शायद ही कोई लड़का होगा जो हस्तमैथुन शब्द से परिचित न हो. लड़के जवानी में प्रवेश करने पर अपनी इच्छा पूर्ति का सबसे आसान साधन हस्तमैथुन को पाते हैं. ऐसे में उनके मन में कई सवाल उठते हैं कि क्या हस्तमैथुन करना गलत है ? क्या हस्तमैथुन से सेहत ख़राब हो जाती है. इस बारे में अक्सर विरोधाभासी बातें सुनने को मिलती हैं. जहां एक ओर कुछ लोगों का कहना होता है कि सम्भोग की इच्छा प्राकृतिक है और हस्तमैथुन का शरीर पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है तो वहीं दूसरी तरफ वो लोग भी होते हैं जो जवान लड़कों में हर तरह के सेहत के नुकसान के लिए हस्तमैथुन को ही ज़िम्मेदार बताते हैं.
आज की वीडियो देखने के बाद आपके मन के सभी डाउट्स क्लियर हो जायेंगे. हम जानेंगे हस्तमैथुन के बारे में आयुर्वेद क्या कहता है ? क्या आयुर्वेद के अनुसार ये एक हानिकारक क्रिया है? साथ ही मॉडर्न मेडिकल साइंस के इस नज़रिये कि हस्तमैथुन एक हानिरहित क्रिया है की सच्चाई को भी समझेंगे.
हस्तमैथुन क्या है.
हस्तमैथुन को इंग्लिश में मैस्टरबेशन कहते हैं. इसके अलावा अंग्रेजी में इसके लिए ओनानिज़म शब्द भी प्रयोग किया जाता है. थोड़ा यूफ़ेमिस्टिकली इसको सेल्फ-एब्यूज़ भी कह देते हैं. खैर, शब्द कुछ भी हो हस्तमैथुन का अर्थ होता है पुरुष द्वारा हाथ के माध्यम से खुद को उत्तेजित करना और वीर्य निकालकर चरम सुख का अनुभव करना. हस्तमैथुन की आदत मुख्य रूप से नवयुवकों में ज़्यादा देखने को मिलती है, क्योंकि कम उम्र के लड़कों में इच्छा संतुष्टि का इससे सरल और सुलभ साधन और कोई नहीं होता.
हस्तमैथुन को लेकर आयुर्वेदिक मत
आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता आदि में सीधे तौर पर हस्तमैथुन का कोई ज़िक्र नहीं आता है. तो कुछ लोग कह देते हैं कि आयुर्वेद में किसी भी प्राकृतिक वेग को रोकना जैसे मल वेग, मूत्र वेग, शुक्र वेग का रोकना स्वास्थ्यय के लिए बुरा बताया गया है, तो इस हिसाब से शुक्र अगर बाहर निकलना चाहता है तो उसको रोकना गलत है और हस्तमैथुन से उसको निकालने में कोई बुराई नहीं है.
नहीं दोस्तों ये बात अर्धसत्य और गलत व्याख्या पर आधारित है. सच तो ये है कि आचार्य चरक वीर्य सरंक्षण को अच्छा मानते हैं और वीर्यनाश को बुरा. वीर्यनाश के नुकसान भी आयुर्वेद में गिनाये गए हैं. आइये जानते हैं आयुर्वेद अपना क्या मत रखता है हस्तमैथुन के बारे में.
आयुर्वेद के अनुसार वीर्य शरीर का निर्माण करने वाली सात धातुओं में से एक है. रस, मांस, मेद, रक्त, अस्थि, मज्जा और शुक्र यानी वीर्य ये सातों धातुएं मिलकर मानव शरीर का निर्माण करती हैं. शुक्र सहित ये सातों धातुओं सिर्फ शरीर का निर्माण ही नहीं करती हैं बल्कि शरीर में जो जीवन ऊर्जा होती है जिसे आयुर्वेद ओज कहता है वो भी इन्हीं सात धातुओं में निवास करती है.
वीर्य की अगर बात करें तो वीर्य इन सातों धातुओं में सबसे ख़ास है.
आयुर्वेद के अनुसार वीर्य का बनना एक कंडेंसशन प्रक्रिया के तहत होता है और वीर्य की एक बूँद बोन मैरो यानी अस्थि मज्जा की चालीस बूँदों के संघनन से बनती है यानी चालीस बूंदों का निचोड़ होती है.
तो इस बारे में आयुर्वेद का मत स्पष्ट है कि अधिक वीर्य स्खलन चाहे वो किसी भी विधि से हो शरीर के लिए घातक होता है. आइये अब एक एक करके समझते हैं:
1 . ब्रह्मचर्य नाश
ब्रह्मचर्य का अर्थ है आदर्श जीवन शैली. ब्रह्मचर्य का पालन करके आत्मा परब्रह्म तक पहुँच सकती है. बहुत संकीर्ण शब्दों में ब्रह्मचर्य को वीर्य संरक्षण का पर्याय माना जाता है. हस्तमैथुन से वीर्य का विनाश करना सबसे आसान है इसलिए हस्तमैथुन ब्रह्मचर्य पालन में बाधक माना गया है.
2 . ऊर्जा ह्रास यानी ऐनर्जी लॉस
लिंग में उत्तेजना आना और तत्पश्चात वीर्य स्खलन एक ऐनर्जी कंज़्यूमिंग प्रोसेस है यानि इसमें बहुत ऊर्जा खर्च होती है. पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है और शरीर की ज़्यादतर गतिविधियों से ऊर्जा बचाकर सम्भोग की क्रिया में लगने लगती है. इसलिए ज़्यादा हस्तमैथुन से ऐनर्जी लॉस होता है और शरीर में कमज़ोरी आती है.
3 . रोगों से लड़ने की ताकत का कम हो जाना
हस्तमैथुन की अधिकता से शरीर की समस्त धातुओं का विघटन होने लगता है और वीर्य के निकलने से ओज भी घटने लगता है जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्युनिटी कमज़ोर हो जाती है और व्यक्ति बार बार रोगों का शिकार होकर बीमार रहने लगता है.
4 . धातु रोग, शुक्र मेह और विषय वासना का दुष्चक्र
हस्तमैथुन से पुरुष विषय वासना के दुष्चक्र में फँस जाता है. हस्तमैथुन की आवृत्ति बढ़ती चली जाती है और व्यक्ति दिन में कई कई बार हस्तमैथुन करने लगता है जिससे शरीर की समस्त धातुएं घुल घुलकर निकलने लगती हैं और पुरुष धातु रोग, शुक्र मेह जैसे रोगों का शिकार होकर जवान होते हुए भी बूढ़े की तरह दिखाई देता होता है जैसे आँखों के नीचे काले गड्ढे, कमज़ोर याददाश्त, झुकी कमर और चेहरे पर पीलापन.
5 . नपुंसकता
महर्षि चरक, चरक संहिता के चिकित्सा स्थान में स्पष्ट कहते हैं कि अधिक वीर्यनाश चाहे वो किसी भी कारण हो नपुंसकता को जन्म देता है. लिंग में उत्तेजना की सख्ती कम हो जाती है और कामेच्छा भी कम हो जाती है या कभी कभी तो बिलकुल ही ख़त्म हो जाती है.
इस प्रकार हम कह सकते हैं की हस्तमैथुन आयुर्वेद के अनुसार एक अच्छी आदत नहीं है और जितना हो सके हमें हस्तमैथुन से बचना चाहिए.
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान क्यों कहता है हस्तमैथुन का कोई नुकसान नहीं है ?
इसमें कोई शक नहीं कि वीर्य निर्माण एक लगातार चलती रहने वाली प्रक्रिया है और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का इसी आधार पर ये मानना है कि हस्तमैथुन का कोई नुकसान नहीं है. ऐलोपैथिक साइंस के मुताबिक हफ्ते में एक दो बार मैस्टरबेशन करने में कोई हर्ज नहीं. पर क्या हकीकत ऐसी ही है? आइये जानते हैं कि सच क्या है?
मॉडर्न मेडिकल साइंस की हस्तमैथुन के बारे में इस राय में कई गंभीर खामियां हैं.
ज़्यादतर लड़के समझ ही नहीं पाते हैं कि हफ्ते में एक दो बार का हस्तमैथुन कब आदत और फिर लत बन जाती है. एक स्थिति ऐसी आती है कि दिन में कई कई बार हस्तमैथुन से भी इच्छा पूरी नहीं हो पाती है और तब हस्तमैथुन के गंभीर और भयावह परिणाम सेहत पर दिखाई देने लगते हैं.
दूसरे, वीर्य निर्माण एक लगातार चलती रहने वाली क्रिया है ये सच है. परन्तु क्या ये भी सच नहीं कि एक शुक्राणु को मैच्योर होने में लगभग तीन महीने लग जाते हैं.
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि ब्रॉडर वे में एलोपेथी और आयुर्वेद के मत एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं. आयुर्वेद भी हस्तमैथुन की सीधे तौर पर बुराई नहीं करता है और आधुनिक विज्ञान भी कभी कभी हस्तमैथुन को बुरा नहीं मानता है. लेकिन आयुर्वेद हो या मॉडर्न साइंस दोनों का मानना है कि अति हर चीज़ की बुरी होती है और हस्तमैथुन इसका अपवाद नहीं.
तो गाइज़ आज की वीडियो का सारांश ये है की हस्तमैथुन एक अच्छी आदत नहीं है. इससे बचिए. देर सबेर इसके नुकसान आपको उठाने पड़ सकते हैं.
आज की वीडियो में तो इतना ही. एक और वीडियो में एक और जानकारी के साथ फिर से मुलाकात होगी. टेक केयर. गुड बाय.